40 की उम्र के बाद काला मोतिया से बच के रहें

40 की उम्र के बाद काला मोतिया से बच के रहें

डॉक्‍टर संजय चौधरी

क्‍या है काला मोतिया

आंखों की सबसे आम बीमारी है मोतियाबिंद जिसे सफेद मोतिया कहते हैं। काला मोतिया भी आंखों की ही बीमारी है और मोतियाबिंद की तरह ये भी बड़ी उम्र में ही लोगों को अपना शिकार बनाती है। काला मोतिया को डॉक्‍टरी भाषा में हम ग्‍लूकोमा के नाम से जानते हैं। काला मोतिया के अलावा इसे नीला मोतिया भी कहा जाता है और ये आम तौर पर 40 साल की उम्र के बाद लोगों को अपना शिकार बनाता है। देश के नेत्रहीन लोगों में करीब सवा फीसदी में नेत्रहीनता का कारण काला मोतिया है।

पहचान एवं जांच

यह बिना किसी आहट के चुपचाप आंखों की रोशनी की छीनने वाली बीमारी है। इसका कोई प्रत्‍यक्ष लक्षण नहीं होता है। इसका पता या तो अचानक या आंखों में किसी अन्‍य खराबी की जांच के दौरान या अंधे हो जाने पर ही चलता है। इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए जरूरी है कि हर व्‍यक्ति 40 साल की उम्र के बाद नियमित रूप से आंखों की जांच कराए। हालांकि कुछ संकेत भी इस बीमारी के हो सकते हैं, जैसे कि, यदि चश्‍मे का नंबर जल्‍दी जल्‍दी बदल रहा हो, धुंधलापन बढ़ रहा हो, दृष्टिफलक यानी फील्‍ड ऑफ विजन कम हो रहा हो, रात में कम दिखता हो, सिनेमा या टीवी देखने अथवा अंधेरे में देर तक बैठने के बाद आंखों में दर्द और भारीपन महसूस हो, लगातार सिरदर्द रहता हो, मधुमेह, एनीमिया या दिल की बीमारी हो, परिवार में काला मोतिया का इतिहास रहा हो अथवा खाने में अर्जीमोन (मिलावटी सरसों तेल) का इस्‍तेमाल किया हो तो किसी अच्‍छे नेत्र रोग विशेषज्ञ से आंखों की जांच करवाएं क्‍योंकि इन सभी स्थिति में काला मोतिया होने की आशंका हो सकती है।

कारण

काला मोतिया होने की स्थिति में आंखों में निश्‍चि‍त मात्रा में बनने वाले एक्‍वश ह्यूमर नामक तरल पदार्थ में असंतुलन उत्‍पन्‍न होता है। इस तरल के आंखों में अधिक जमा हो जाने के कारण आईबॉल या नेत्र गोलक पर एक्‍वश ह्यूमर का दबाव बढ़ जाता है। नेत्र गोलक पर दबाव बढ़ने से आंखों को रक्‍त पहुंचाने वाली नसों या ऑप्टिक नर्व पर भी दबाव बढ़ जाता है। इसके कारण ये नर्व एक एक करके खराब होने लगती हैं और काम करना बंद कर देती हैं। इनके खराब होने से आंखों पर तत्‍काल असर पड़ता है। यह काला मोतिया की शरुआती अवस्‍था है। प्रारंभ में इसके कोई लक्षण नहीं होने से ही यह बहुत खतरनाक होता है, लेकिन जब एक एक करके सारी नर्व खराब हो जाती हैं तो व्‍यक्ति अंधा हो जाता है और इसे किसी भी इलाज से ठीक नहीं किया जा सकता।

काला मोतिया के प्रकार

काला मोतिया का दूसरा रूप है प्राइमरी एंगल क्‍लोजर ग्‍लूकोमा। यह अधिकतर अधेड़ उम्र की महिलाओं में पाया जाता है। यही एक अकेला काला मोतिया है जिसका मरीज को शुरू में पता चल जाता है। इसके बहुत ज्‍यादा धुंधला दिखाई पड़ता है, आंखों में तेज दर्द होता है, आंखें लाल हो जाती है और कभी कभी मितली या उलटी भी होती है। कंजेनिट ग्‍लूकोमा बच्‍चों में होने वाला एक खास किस्‍म का काला मोति‍या है। बच्‍चों में यह काला मोतिया गर्भ के दौरान ही शुरू हो जाता है। हालांकि अभी तक इसके कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन इसके आनुवांशिक कारण हो सकते हैं। इसमें बच्‍चों की आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं जो देखने में सुंदर लगती हैं मगर ज्‍यों ज्‍यों बच्‍चा बड़ा होता है, उसे उजाले में जाने में झिझक होने लगती है और रोशनी में जाने पर उसकी आंखों से पानी आने लगता है। धीरे-धीरे उसकी नजर कमजोर होने लगती है।

काला मोतिया बाह्य कारणों से भी होता है। इसे सेकंडरी ग्‍लूकोमा कहते हैं। आंखों में चोट लगने, अधिक मात्रा में स्‍टेरॉयड लेने, ट्यूमर या हेमरेज या आंखों में सूजन हो तो इनकी वजह से एक्‍वश ह्यूमर का दबाव बढ़ सकता है और काला मोतिया हो सकता है।

उपचार

काला मोति‍या का इलाज उसकी स्थिति एवं उसके प्रकार पर निर्भर करता है। इसका इलाज आमतौर पर दवाइयों, लेजर सर्जरी और सामान्‍य सर्जरी से होता है। दवाइयों का सेवन लगातार करना होता है। अधिकतर मरीजों में काला मोत‍िया दवाइयों से ही नियंत्रण में रहता है लेकिन एक स्थिति ऐसी आती है, जब दवा बेअसर होने लगती है। ऐसे में लेजर सर्जरी से काला मोतिया को ठीक किया जाता है। इसमें न तो चीर फाड़ करनी होती है और न ही मरीज को अस्‍पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। बीमारी की अलग-अलग किस्‍म के अनुसार अलग-अलग लेजर का इस्‍तेमाल किया जाता है।

सावधानी

इलाज के बाद मरीजों को अपनी आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए। आंखों को मलना या रगड़ना नहीं चाहिए। आंखों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालें। इसके अलावा मरीज अपने रोजमर्रा के काम-काज मजे से कर सकता है। 40 साल से अधिक उम्र के मरीज इस बात का ख्‍याल रखें कि काला मोतिया का परिणाम नेत्रहीनता हो सकती है। इसलिए समय से आंखों की जांच कराते रहें। शुरू में पकड़ में आ जाए तो मरीज अंधा होने से बच सकता है।

(लेखक आई7 अस्‍पताल समूह के संचालक हैं। यह आलेख फैमिली हेल्‍थ गाइड से साभार लिया गया है। यह किताब प्रभात प्रकाशन से मंगाई जा सकती है।)

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